यह एक ऐसा मुकदमा था जिस का लक्ष्य किसी अपराध विशेष के लिए किसी अभियुक्त अभियोजित करना और दंड देना था ही नहीं।
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परंतु भ्रष्ट आचरण में संलिप्त ऐसे व्यक्तियों को अभियोजित करना एवं उनके द्वारा अवैध ढंग से अर्जित सम्पतियों को जब्त करना राज्य सरकार का दायित्व बनता है।
3.
अनुसन्धानकर्ता द्वारा अभियोजन-स्वीकृति चाहने पर अनुसन्धान पत्रावली देखी और साक्ष्य का अवलोकन किया तथा अनुसन्धानकर्ता से विचार-विमर्श कर सन्तुष्ट हुआ कि स्वर्णसिंह उपनिरीक्षक को सक्षम न्यायालय में अभियोजित करना उचित है तब प्रदर्श पी. 1 अभियोजन-स्वीकृति दिनांक 27-12-2004 को जारी की जिस पर ए से बी इस गवाह के आपराधिक प्रकरण संख्या 37/2005-14-राज्य विरूद्ध स्वर्णसिंह हस्ताक्षर है।